
उत्तराखंड में एक बार फिर भर्ती परीक्षा में पेपर लीक की घटना ने युवाओं के भविष्य को संकट में डाल दिया है। उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग (यूके ट्रिपल एससी) की स्नातक स्तरीय परीक्षा का पेपर लीक होना न केवल दुखद है, बल्कि राज्य की परीक्षा प्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े करता है। यह दूसरी बार है जब राज्य में सख्त नकल विरोधी कानून लागू होने के बावजूद ऐसी घटना सामने आई है, जिससे युवाओं में गहरा आक्रोश है।
भरोसे की डोर पर चोट
उत्तराखंड एक युवा-प्रधान राज्य है, जहां लाखों युवा सरकारी नौकरियों के लिए भर्ती परीक्षाओं की तैयारी करते हैं। पेपर लीक की घटनाएं उनकी मेहनत, समय और धन को बर्बाद करती हैं। इससे न केवल उनका आत्मविश्वास डगमगाता है, बल्कि प्रशासनिक व्यवस्था पर भी अविश्वास गहराता है। इस बार की घटना ने राजनीतिक हलकों में भी हलचल मचा दी है। कई विभागों में इस मुद्दे पर तीखी बहस हो रही है और उच्च स्तर पर चर्चाएं जारी हैं। कुछ लोग इस मामले में न्यायिक जांच की मांग कर रहे हैं ताकि दोषियों को सख्त सजा मिल सके और भविष्य में ऐसी घटनाएं न दोहराई जाएं।
यूके ट्रिपल एससी की कार्यप्रणाली पर सवाल
2014 में गठित उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग शुरू से ही विवादों में रहा है। 2021 और 2022 में भी स्नातक स्तरीय परीक्षाओं के पेपर लीक हुए थे, जिससे आयोग की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल उठे। इन घटनाओं के बाद कई अधिकारियों और एजेंटों की गिरफ्तारियां हुईं और आयोग की सभी भर्तियां निलंबित कर दी गईं। कार्यभार उत्तराखंड लोक सेवा आयोग (यूके पीएससी) को सौंपा गया, जिसने कई परीक्षाएं दोबारा आयोजित कीं। इससे युवाओं को न केवल मानसिक तनाव झेलना पड़ा, बल्कि उम्र और धन का भी नुकसान हुआ।

क्या वाकई जरूरी है अलग अधीनस्थ आयोग?
उत्तराखंड जैसे छोटे राज्य में अलग अधीनस्थ सेवा चयन आयोग की आवश्यकता पर भी सवाल उठ रहे हैं। राज्य में केवल 13 जिले हैं और यूके पीएससी के पास पर्याप्त संसाधन हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि यूके पीएससी में दो-तीन अतिरिक्त सदस्य नियुक्त करके सभी भर्तियों को आसानी से संभाला जा सकता है। अधीनस्थ आयोग में विषय विशेषज्ञों की कमी और निर्णय लेने की धीमी प्रक्रिया इसे और भी कमजोर बनाती है। क्षेत्रीय प्राथमिकता देने का तर्क भी उत्तराखंड जैसे छोटे राज्य में प्रभावी नहीं लगता।
अन्य राज्यों से तुलना
भारत के अधिकांश राज्यों में केवल एक लोक सेवा आयोग होता है, जो सभी ग्रुप की भर्तियों को संभालता है। उदाहरण के लिए, केरल जैसे छोटे मगर शिक्षित राज्य में लोक सेवा आयोग के 18 सदस्य हैं और वहां कोई अलग अधीनस्थ आयोग नहीं है। इसके बावजूद वहां की भर्ती प्रक्रिया पारदर्शी और प्रभावी मानी जाती है। उत्तराखंड को भी इसी मॉडल पर विचार करना चाहिए।
पारदर्शिता और जवाबदेही की मांग
यूके ट्रिपल एससी में पेपर लीक की घटनाएं तकनीकी खामियों और तंत्र की अक्षमता को उजागर करती हैं। प्रश्न उठता है कि प्रश्नपत्रों की तस्वीरें खींचकर बाहर कैसे भेजी जाती हैं? यह सीधे-सीधे पारदर्शिता और जवाबदेही की कमी को दर्शाता है। सरकार को इस मुद्दे पर गंभीरता से विचार करना चाहिए और ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए।

युवाओं का भरोसा बचाना जरूरी
भर्ती परीक्षाएं युवाओं के सपनों की सीढ़ी होती हैं। अगर इन पर बार-बार चोट होती रही, तो युवाओं का भरोसा टूट जाएगा। यह केवल एक प्रशासनिक विफलता नहीं, बल्कि सामाजिक संकट भी है। सरकार को चाहिए कि वह दोषियों को सख्त सजा दे, परीक्षा प्रणाली को मजबूत करे और युवाओं के सपनों की रक्षा करे। तभी भर्ती परीक्षाओं पर युवाओं का भरोसा कायम रह सकेगा।

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