
उत्तर प्रदेश में पंचायत और विधानसभा चुनावों की आहट के बीच जातीय समीकरणों को साधने की कवायद तेज हो गई है। विपक्षी दलों की रणनीति का जवाब देने के लिए योगी सरकार ने एक अहम कदम उठाया है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने शनिवार को श्रावस्ती में वाल्मीकि जयंती पर सार्वजनिक अवकाश बहाल करने की घोषणा की, जिसे राजनीतिक दृष्टि से भाजपा के परंपरागत वाल्मीकि समाज के मतदाताओं को साधने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि आगामी 7 अक्टूबर को महर्षि वाल्मीकि की जयंती के अवसर पर प्रदेश भर के मंदिरों में संस्कृति विभाग द्वारा मानस पाठ और अन्य धार्मिक आयोजनों का आयोजन किया जाएगा। यह निर्णय न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व को रेखांकित करता है, बल्कि सामाजिक समरसता की दिशा में भी एक प्रतीकात्मक पहल है।
गौरतलब है कि वर्ष 2017 में योगी सरकार के गठन के बाद प्रदेश में कार्य संस्कृति को सुधारने के उद्देश्य से कई सार्वजनिक छुट्टियों को रद्द कर दिया गया था, जिसमें वाल्मीकि जयंती की छुट्टी भी शामिल थी। हालांकि, पिछले कुछ समय से इस छुट्टी को बहाल करने की मांग जोर पकड़ रही थी। संभल, शाहजहांपुर जैसे जिलों में इसको लेकर ज्ञापन सौंपे गए थे।
दो दिन पहले डॉ. आंबेडकर ट्रस्ट के राष्ट्रीय अध्यक्ष और विधान परिषद सदस्य डॉ. लालजी प्रसाद निर्मल ने प्रतिनिधिमंडल के साथ मुख्यमंत्री से मुलाकात कर वाल्मीकि जयंती पर अवकाश बहाल करने का अनुरोध किया था। इसके बाद श्रावस्ती में मुख्यमंत्री ने इस मांग को स्वीकार करते हुए सार्वजनिक अवकाश की घोषणा कर दी।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि वाल्मीकि समाज भाजपा का परंपरागत वोट बैंक रहा है। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनावों में विशेष रूप से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में इस समाज और अन्य छोटी जातियों के समर्थन से भाजपा को बड़ी जीत हासिल हुई थी। ऐसे में यह निर्णय आगामी चुनावों से पहले सामाजिक और राजनीतिक संतुलन साधने की दिशा में एक रणनीतिक कदम माना जा रहा है।
योगी सरकार का यह फैसला न केवल वाल्मीकि समाज को सम्मान देने की पहल है, बल्कि प्रदेश की सामाजिक विविधता को स्वीकार कर उसे सशक्त बनाने की दिशा में भी एक महत्वपूर्ण संकेत है।

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