
लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने एक बार फिर “वोट चोरी” का आरोप लगाकर चुनाव आयोग पर निशाना साधा है। इस बार उन्होंने कर्नाटक की अलंद विधानसभा सीट से कांग्रेस के 6,018 वोट काटे जाने का आरोप लगाया और एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में यह समझाने की कोशिश की कि किस तरह मोबाइल फोन के जरिए कांग्रेस के वोटरों के नाम वोटर लिस्ट से हटाए गए। यह कोई पहला मौका नहीं है, जब राहुल गांधी ने चुनाव आयोग की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए हैं। इससे पहले भी वह महाराष्ट्र और बिहार में इसी तरह के आरोप लगा चुके हैं। पहले वह ईवीएम में छेड़छाड़ का मुद्दा उठाते थे, लेकिन जब सुप्रीम कोर्ट में यह मुद्दा कमजोर पड़ गया, तो उन्होंने “वोट चोरी” के आरोपों को एक राजनीतिक अभियान का रूप दे दिया।
राहुल गांधी सीधे मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार पर हमला बोल रहे हैं, यह आरोप लगाते हुए कि वे भाजपा को जिताने के लिए कांग्रेस के वोट काट रहे हैं। हालांकि, चुनाव आयोग और अन्य जांच एजेंसियां इन आरोपों को निराधार बता रही हैं।

आरोपों की हकीकत
राहुल गांधी ने कर्नाटक के जिस मामले को पेश किया, उसकी हकीकत उनके दावे से अलग है। चुनाव आयोग के अनुसार, अलंद विधानसभा सीट पर सिर्फ 24 वोट हटाए गए थे और वे भी नियमानुसार। अन्य वोटों को हटाने की कोशिशें असफल रहीं। इस मामले में खुद चुनाव आयोग ने एफआईआर दर्ज कराई थी और इसकी जांच कर्नाटक की सीआईडी कर रही है। चुनाव आयोग का कहना है कि उन्होंने सीआईडी द्वारा मांगी गई सभी जानकारी उपलब्ध करा दी है, इसलिए अब गेंद सीआईडी के पाले में है।
चुनाव आयोग ने यह भी स्पष्ट किया है कि मोबाइल फोन के जरिए वोटर लिस्ट में छेड़छाड़ करना संभव नहीं है। किसी का नाम जोड़ने या हटाने की एक तय प्रक्रिया होती है, जिसमें सरकारी अधिकारी शामिल होते हैं। यदि कोई गड़बड़ी होती है, तो उसके लिए राज्य सरकार के अधीन काम करने वाले अधिकारी जिम्मेदार होते हैं, न कि सीधे मुख्य चुनाव आयुक्त।
राजनीतिक हताशा या लोकतांत्रिक जिम्मेदारी?
राहुल गांधी जिस तरह से कुछ सौ या हजार वोटों की गड़बड़ी को “वोट चोरी” का नाम देकर पूरे लोकतंत्र को खतरे में बता रहे हैं, उस पर कई सवाल खड़े होते हैं। यह सच है कि मतदाता सूची दुरुस्त होनी चाहिए, लेकिन यह भी सच है कि 96 करोड़ मतदाताओं वाले देश में कुछ तकनीकी या मानवीय गड़बड़ियां हो सकती हैं। क्या कांग्रेस यह गारंटी दे सकती है कि उसके शासनकाल में मतदाता सूचियां पूरी तरह से त्रुटिहीन थीं?

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह राहुल गांधी की राजनीतिक हताशा का परिणाम है। लोकसभा चुनाव में 99 सीटें जीतने के बाद कांग्रेस को लगा था कि उसकी वापसी हो रही है, लेकिन हाल के चुनावों में जब उन्हें अपेक्षित सफलता नहीं मिली, तो उन्होंने अपनी हार का ठीकरा भाजपा और चुनाव आयोग पर फोड़ना शुरू कर दिया।
राहुल गांधी लगातार यह दावा कर रहे हैं कि “वोट चोरी के कारण लोकतंत्र खतरे में है,” लेकिन चुनाव आयोग जैसी संवैधानिक संस्था पर लगातार सवाल उठाकर वे खुद ही लोकतंत्र को कमजोर कर रहे हैं। लोकतंत्र कायदे-कानून से चलता है, मनमानी से नहीं। यदि राहुल गांधी के पास पुख्ता सबूत हैं, तो उन्हें अदालत जाना चाहिए, लेकिन वे ऐसा नहीं कर रहे हैं। उनका यह रवैया लोगों को बरगलाकर अराजकता फैलाने की कोशिश जैसा लगता है। सवाल यह है कि यदि “वोट चोरी” हो रही है, तो भाजपा लोकसभा में बहुमत से पीछे क्यों रह गई या झारखंड जैसे राज्यों में क्यों हारी? यह विरोधाभास उनके आरोपों को और भी कमजोर बनाता है।

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