
जगदीप धनखड़ के उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा देने के बाद राजनीतिक गलियारों में हलचल मच गई है। इस पद के लिए हो रहे नए चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस (NDA) की ओर से वरिष्ठ नेता सीपी राधाकृष्णन को उम्मीदवार बनाकर कई स्तरों पर सियासी चाल चली है। राधाकृष्णन का नाम सामने आते ही यह साफ हो गया कि बीजेपी ने इस चुनाव के जरिए न केवल संघ को साधा है, बल्कि दक्षिण भारत में अपनी पकड़ मजबूत करने और सामाजिक समीकरणों को संतुलित करने की भी कोशिश की है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से कनेक्शन और तमिल ब्राह्मण
सीपी राधाकृष्णन का संबंध राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से गहरा रहा है। वे तमिलनाडु में लंबे समय तक संगठन के प्रमुख चेहरों में से एक रहे हैं। एक ज़माने में कोयंबटूर से दो बार लोकसभा सांसद रहे राधाकृष्णन को हाल ही में झारखंड का राज्यपाल नियुक्त किया गया था। वे मूलतः तमिल ब्राह्मण समुदाय से आते हैं, जो दक्षिण भारत में एक प्रभावशाली वर्ग माना जाता है। बीजेपी ने उन्हें उम्मीदवार बनाकर न केवल तमिलनाडु में ब्राह्मण समुदाय को संदेश दिया है, बल्कि यह भी दिखाने की कोशिश की है कि पार्टी दक्षिण भारत को केवल चुनावी प्रयोगशाला नहीं, बल्कि नेतृत्व का केंद्र भी बना रही है।

संगठन के प्रति निष्ठावान
बीजेपी की यह रणनीति कई मोर्चों पर फायदे का सौदा साबित हो सकती है। पहला, इससे दक्षिण भारत में पार्टी को एक मजबूत चेहरा मिलेगा जो न केवल संघ की पृष्ठभूमि से है बल्कि तमिलनाडु जैसे राज्य का प्रतिनिधित्व करता है, जहाँ पार्टी अभी भी राजनीतिक रूप से कमजोर है। दूसरा, इससे आरएसएस की भी अपेक्षाएँ पूरी होती दिख रही हैं, क्योंकि राधाकृष्णन संगठन के प्रति निष्ठावान माने जाते हैं। तीसरा, ब्राह्मण समाज को साधने की कोशिश है, जो उत्तर और दक्षिण दोनों क्षेत्रों में अलग-अलग स्वरूपों में बीजेपी का परंपरागत समर्थन आधार रहा है।
इसके अलावा, यह फैसला विपक्ष को भी सोचने पर मजबूर कर सकता है। अब सबकी निगाहें इस पर हैं कि इंडिया गठबंधन या अन्य विपक्षी दल किसे उपराष्ट्रपति पद के लिए मैदान में उतारते हैं। अगर विपक्ष किसी दक्षिण भारतीय नेता को सामने लाता है, तो यह मुकाबला और भी दिलचस्प हो सकता है। हालांकि, संसद में एनडीए का संख्या बल देखते हुए राधाकृष्णन की जीत लगभग तय मानी जा रही है, लेकिन राजनीतिक संकेत और छवि निर्माण की दृष्टि से यह चुनाव बेहद अहम होगा।

बीजेपी ने इस कदम के जरिए यह दिखाने की कोशिश की है कि वह क्षेत्रीय और सामाजिक संतुलन बनाकर देशभर में अपने राजनीतिक प्रभाव को और मजबूत करने की दिशा में सक्रिय है। उपराष्ट्रपति का चुनाव भले ही औपचारिकता भर हो, लेकिन इसके ज़रिए भेजे गए संदेश दूरगामी असर डाल सकते हैं।

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