
बिहार विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है, वैसे-वैसे राजनीतिक दलों में टिकट के दावेदारों की भीड़ बढ़ती जा रही है। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में चुनावी टिकट के लिए होड़ चरम पर है, जहाँ अब तक 5,000 से अधिक आवेदन पार्टी कार्यालय पहुँच चुके हैं। ये आवेदन बायोडाटा के साथ जमा किए जा रहे हैं, और यह सिलसिला अभी भी जारी है। सबसे दिलचस्प बात यह है कि इस बार आवेदकों में सर्वाधिक संख्या 35 से 45 वर्ष के आयु वर्ग के युवाओं की है, जो बिहार की राजनीतिक चेतना और बदलते समीकरणों का स्पष्ट प्रमाण है।
युवाओं का जोश और बदलते समीकरण
बिहार को हमेशा से एक राजनीतिक रूप से जागरूक राज्य माना जाता रहा है, और टिकट के लिए उमड़ रहा युवाओं का हुजूम इस बात का ताजा उदाहरण है। ये युवा नेता, कार्यकर्ता, पूर्व विधायक, ग्राम पंचायत और नगर निकाय के प्रतिनिधि, और समाजसेवी शामिल हैं। पार्टी कार्यालय में सीधे आवेदन जमा करने के अलावा, कई दावेदार वरिष्ठ नेताओं से मिलकर अपना दावा मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं। वे पार्टी के लिए अपनी लंबी सेवा और समर्पण का हवाला दे रहे हैं।
विश्लेषकों का मानना है कि इस बार युवाओं में इतनी उत्सुकता उन विधानसभा सीटों को लेकर है जहाँ के मौजूदा विधायक उम्रदराज हैं। अंदरखाने इस बात की चर्चा जोरों पर है कि पार्टी इन सीटों पर नए चेहरों को मौका दे सकती है। इस अटकल ने युवा दावेदारों को उत्साहित किया है, और वे इसे अपने लिए एक बड़ा अवसर मान रहे हैं।

पुरानी पीढ़ी की चिंता और धमकी की राजनीति
जहाँ युवा अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं, वहीं पार्टी में एक और तबका भी सक्रिय है। कई वरिष्ठ नेता, जिनकी उम्र 70 वर्ष के आसपास है और जिन्हें आज तक कभी चुनाव लड़ने का मौका नहीं मिला, अब अपने परिवार के किसी सदस्य के लिए टिकट की मांग कर रहे हैं। यह एक पीढ़ीगत बदलाव का संकेत है, जहाँ पुरानी पीढ़ी अब सीधे चुनाव लड़ने की बजाय अपने वारिसों को राजनीति में स्थापित करना चाह रही है।
इस गहमागहमी के बीच, कुछ नेता-कार्यकर्ता अपनी नाराजगी भी खुले तौर पर जाहिर कर रहे हैं। वे यह धमकी भी दे रहे हैं कि अगर उन्हें टिकट नहीं मिला तो वे या तो ‘जनसुराज’ जैसे नए राजनीतिक मंच में शामिल हो जाएंगे या किसी अन्य पार्टी से चुनाव लड़ेंगे। इस तरह की धमकियाँ भाजपा के लिए एक नई चुनौती पेश कर रही हैं, क्योंकि पार्टी को यह सुनिश्चित करना होगा कि असंतुष्ट नेताओं को शांत किया जाए और वे पार्टी को छोड़कर न जाएं, जिससे चुनाव में नुकसान हो सकता है।
भाजपा के सामने चुनौती
भाजपा के सामने अब दोहरी चुनौती है: एक तरफ युवाओं की आकांक्षाओं को पूरा करना और उन्हें पर्याप्त प्रतिनिधित्व देना, वहीं दूसरी तरफ पुराने और अनुभवी नेताओं को भी संतुष्ट करना, ताकि पार्टी में एकता बनी रहे। पार्टी को यह तय करना होगा कि वह किस तरह से इन आवेदनों की समीक्षा करे और उम्मीदवारों का चयन करे।
युवा शक्ति को मौका: युवाओं को टिकट देने से पार्टी को एक नई ऊर्जा और उत्साह मिलेगा। ये युवा आधुनिक तकनीक और विचारों से लैस हैं, जो चुनाव प्रचार और मतदाताओं तक पहुँचने के तरीकों में क्रांति ला सकते हैं।

अनुभव का सम्मान: दूसरी ओर, अनुभवी नेताओं का सम्मान करना भी जरूरी है। उनकी नाराजगी पार्टी के लिए नुकसानदेह हो सकती है। उन्हें संतुष्ट करने के लिए पार्टी को उन्हें महत्वपूर्ण भूमिकाएँ या अन्य जिम्मेदारियाँ देनी पड़ सकती हैं।
संभावित नुकसान से निपटना: उन नेताओं से निपटना भी एक बड़ी चुनौती है जो टिकट न मिलने पर अन्य दलों में जाने की धमकी दे रहे हैं। पार्टी को इन ‘असंतोष के स्वरों’ को गंभीरता से लेना होगा और डैमेज कंट्रोल रणनीति बनानी होगी।
बिहार का यह चुनावी परिदृश्य भाजपा की रणनीतिक कुशलता की परीक्षा लेगा। पार्टी को न केवल सही उम्मीदवारों का चयन करना होगा, बल्कि यह भी सुनिश्चित करना होगा कि चुनावी रण में उतरने से पहले आंतरिक कलह को खत्म किया जा सके। 5,000 से अधिक आवेदन यह दर्शाते हैं कि भाजपा में चुनाव लड़ने की होड़ कितनी मजबूत है, लेकिन यह भी दिखाता है कि पार्टी को एक मजबूत और संतुलित टीम बनाने के लिए कितनी मेहनत करनी पड़ेगी।

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