
दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ (डूसू) चुनाव के बीच छात्र समुदाय ने एकजुट होकर यह आवाज बुलंद की है कि उन्हें ऐसे नेता की जरूरत है, जो जातिवाद और क्षेत्रवाद की राजनीति से ऊपर उठकर सीधे-सीधे छात्र हितों की बात करे। छात्रों का कहना है कि इस बार वोट उसी को मिलना चाहिए, जो छात्र समुदाय की असली समस्याओं को प्राथमिकता दे और किसी भी तरह का समझौता न करे।
“छात्र हित पहले, न कि जातिवाद-राज्यवाद”
समाचार प्रतिनिधियों से बातचीत में छात्र देव ने साफ शब्दों में कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि चुनावों के दौरान उम्मीदवारों का आकलन अक्सर उनके क्षेत्र या राज्य के आधार पर किया जाता है। उन्होंने कहा, “यह सुनकर दुख होता है जब कोई कहता है कि हमारे पूर्वांचल का या एनसीआर का लड़का खड़ा है और हमें हर हाल में उसे जिताना है। ऐसी मानसिकता चुनाव के लिहाज से ठीक नहीं है। हमें अपने हितों के लिए काम करने वाले नेता को चुनना चाहिए।”
देव ने आगे कहा कि वर्तमान समय में विश्वविद्यालय के छात्रों को कई गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। दिल्ली से बाहर से आने वाले छात्रों के लिए सबसे बड़ी चुनौती आवास है। पर्याप्त छात्रावास न होने के कारण उन्हें निजी मकानों में रहना पड़ता है और वहां अत्यधिक किराया देना पड़ता है। साथ ही, मेट्रो और परिवहन के बढ़ते खर्च से उनकी आर्थिक स्थिति पर और दबाव पड़ रहा है।
“कुर्सी योग्य को मिले”
छात्र देव ने यह भी कहा कि वोट उसी को मिलना चाहिए, जो वास्तव में छात्रों के लिए काम करने को तैयार हो, न कि सिर्फ किसी खास क्षेत्र से ताल्लुक रखने के कारण। “हम छात्र राजनीति कर रहे हैं और इसमें छात्र हित सर्वोपरि है। लेकिन आज छात्रों के हितों के साथ समझौता किया जा रहा है। अब बदलाव का वक्त आ चुका है।”
पहली बार वोट का अनुभव
छात्र ईशान, जिन्होंने पहली बार वोट डाला, ने बताया कि उन्हें यह अनुभव काफी उत्साहजनक लगा। उन्होंने कहा कि इस बार अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) और भारतीय राष्ट्रीय छात्र संगठन (एनएसयूआई) के बीच कड़ी टक्कर देखने को मिल सकती है। ईशान का मानना है कि आने-जाने में ज्यादा किराया लगना छात्रों की बड़ी समस्या है और इस दिशा में छात्र नेताओं को ठोस कदम उठाने चाहिए। उन्होंने भी इस बात पर जोर दिया कि नेता ऐसा होना चाहिए, जो किसी भी परिस्थिति में छात्रों के हितों से समझौता न करे।
“आर्थिक बोझ कम करने की जरूरत”
एक अन्य छात्र ने कहा कि मौजूदा हालात में परिवहन खर्च छात्रों के लिए बोझ बन गया है। “हम चाहते हैं कि ऐसा नेता चुना जाए, जो मेट्रो और बसों के किराए को कम करने के लिए प्रयास करे। यह सीधे-सीधे छात्रों की जेब से जुड़ा मामला है और नेताओं को इसे हल्के में नहीं लेना चाहिए।”
महिलाओं के सशक्तिकरण पर जोर
छात्र अभिषेक मिश्रा ने बताया कि उनका संगठन इस बार महिलाओं के सशक्तिकरण पर विशेष ध्यान दे रहा है। इसी मकसद से उनके संगठन ने दो छात्राओं को चुनावी मैदान में उतारने का निर्णय लिया है। उन्होंने कहा, “हमारी कोशिश है कि कॉलेज और विश्वविद्यालय स्तर पर छात्राओं को किसी भी प्रकार की परेशानी न हो। यह सुनिश्चित किया जाएगा कि महिला छात्रों की आवाज बुलंद तरीके से उठे।”
“बाहरी छात्रों के साथ भेदभाव न हो”
अभिषेक ने आगे कहा कि दिल्ली के बाहर से आने वाले छात्रों को अक्सर भेदभाव और असुविधा का सामना करना पड़ता है। किराए से लेकर रहने-सहने और भाषा की बाधा तक कई समस्याएँ होती हैं। उनका संगठन यह सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है कि ऐसे छात्रों को किसी भी प्रकार की परेशानी का सामना न करना पड़े और उन्हें बराबरी का माहौल मिले।
डूसू चुनाव के बीच छात्रों की यह आवाज साफ संकेत देती है कि अब छात्र केवल नारेबाजी और क्षेत्रीय पहचान पर वोट नहीं देना चाहते। उनकी प्राथमिकता बदल चुकी है और वे ऐसे नेता की तलाश में हैं, जो उनके असली मुद्दों—जैसे कि आवास, परिवहन, आर्थिक बोझ, महिला सशक्तिकरण और भेदभाव-मुक्त माहौल—को उठाए।
छात्र समुदाय के इस रुख से साफ है कि डूसू चुनाव अब केवल राजनीतिक दलों के बीच शक्ति प्रदर्शन का मंच नहीं रहा, बल्कि यह छात्रों की वास्तविक समस्याओं का समाधान करने वाला मंच भी बन सकता है। अब देखना यह होगा कि छात्र नेताओं और संगठनों में से कौन इस चुनौती को स्वीकार करता है और छात्रों की उम्मीदों पर खरा उतर पाता है।

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