
बिहार विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) एक नई और अभूतपूर्व रणनीति पर काम कर रहा है। इस बार, गठबंधन के घटक दल सिर्फ सीटों का बंटवारा नहीं करेंगे, बल्कि हर सीट के लिए संयुक्त रूप से उम्मीदवार तय करने पर विचार कर रहे हैं। इस पहल का उद्देश्य हर सीट पर उम्मीदवार की जीत सुनिश्चित करना है। इस नई व्यवस्था को लागू करने के लिए वरिष्ठ नेताओं की एक अलग समिति बनाने पर भी मंथन चल रहा है।
यह रणनीति महाराष्ट्र में राजग की एकजुटता के बाद और अधिक मजबूत हुई है, जहां गठबंधन ने सिर्फ चुनाव प्रचार ही नहीं, बल्कि उम्मीदवार चयन में भी समन्वय बढ़ाने पर जोर दिया है। यदि यह प्रयोग सफल होता है, तो यह भारतीय राजनीति में एक नई परंपरा की शुरुआत होगी, जहां गठबंधन के दल अपनी-अपनी सीटों के लिए उम्मीदवार खुद तय करने के बजाय, मिलकर फैसला लेंगे।
अब तक की परंपरा यह रही है कि गठबंधन के बीच सीटों का बंटवारा होने के बाद, संबंधित दल अपने हिस्से की सीटों पर अपने चुनाव चिन्ह पर अपने उम्मीदवार खड़े करता है। कभी-कभी किसी पार्टी का नेता सहयोगी दल के चुनाव चिह्न पर भी चुनाव लड़ता है, लेकिन उम्मीदवार के चयन में इतनी गहरी सहमति एक नई पहल होगी।
इस नई रणनीति का संकेत तब मिला जब भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने बिहार विधानसभा चुनाव के लिए किसी भी चुनाव प्रभारी की नियुक्ति नहीं की। यह एक बड़ा संकेत है कि गठबंधन सभी दलों को साथ लेकर आगे बढ़ने का इरादा रखता है।

इसके अलावा, सभी सीटों पर चुनाव अभियान में एकरूपता बनाए रखने के लिए राजग के घटक दलों को मिलाकर चुनाव अभियान समिति बनाने का फैसला भी हो चुका है, जिसकी घोषणा जल्द ही की जा सकती है। इस समिति का लक्ष्य है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अन्य वरिष्ठ नेताओं की रैलियों और अभियानों का अधिकतम प्रभाव सुनिश्चित किया जा सके।
गौरतलब है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में बिहार, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में राजग की एकजुटता के अच्छे परिणाम देखने को मिले थे। इसी सफलता से उत्साहित होकर गृह मंत्री अमित शाह ने इसे बिहार में अगले स्तर पर ले जाने का फैसला किया है। लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जनता दल (यू), तेलुगु देशम पार्टी (तेदेपा) और जनता दल (एस) जैसी सहयोगी पार्टियों की सीटों पर भी रैलियां की थीं, जिससे गठबंधन को भारी फायदा मिला था। इसी तरह की रणनीति को अब विधानसभा चुनाव में भी दोहराने की तैयारी है।

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