
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने शनिवार को भारतीय रक्षा संपदा सेवा (आईडीईएस) के 2024 बैच के प्रशिक्षु अधिकारियों को संबोधित करते हुए देश की संप्रभुता, सुरक्षा, शिक्षा और विकास पर विस्तृत रूप से अपनी बात रखी। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि दुनिया की कोई भी शक्ति भारत को यह निर्देश नहीं दे सकती कि वह अपने आंतरिक मामलों को कैसे संचालित करे।
भारत एक संप्रभु राष्ट्र, फैसले यहीं लिए जाते हैं
उपराष्ट्रपति ने अमेरिका सहित किसी भी बाहरी ताकत की दखल पर आपत्ति जताते हुए कहा, “हम एक संप्रभु राष्ट्र हैं। अंतरराष्ट्रीय समुदाय का हिस्सा जरूर हैं, लेकिन हमारे सभी निर्णय हमारी नेतृत्व व्यवस्था द्वारा लिए जाते हैं।” उन्होंने प्रशिक्षुओं को बाहरी विमर्शों से प्रभावित न होने की सलाह दी।
विवादों में उलझने से बचें, ध्यान लक्ष्य पर रखें
धनखड़ ने क्रिकेट के उदाहरण से समझाते हुए कहा, “क्या हर बॉल खेलनी ज़रूरी है? अच्छे खिलाड़ी खराब गेंदों को छोड़ते हैं। हमें भी हर विवाद या बयान पर प्रतिक्रिया देने की जरूरत नहीं।” उनका संदेश स्पष्ट था कि राष्ट्र को अपने उद्देश्यों और मूल्यों पर केंद्रित रहना चाहिए।
‘ऑपरेशन सिंदूर’ का किया उल्लेख
उपराष्ट्रपति ने आतंकवाद से निपटने में भारत की कार्रवाई का उदाहरण देते हुए कहा कि भारत ने “बहावलपुर और मुरिदके” को निशाना बनाया और ‘ऑपरेशन सिंदूर’ अभी भी जारी है। उन्होंने कहा कि भारत शांति और मानवीय मूल्यों का प्रतीक है, लेकिन जब ज़रूरत हो, तो वह सख्त कार्रवाई से भी पीछे नहीं हटता।
जनसंख्या संरचना भारत की ताकत
धनखड़ ने भारत की युवा जनसंख्या को देश की सबसे बड़ी पूंजी बताते हुए कहा, “हमारी 65% आबादी 35 साल से कम है। भारत की औसत आयु 28 वर्ष है, जबकि अमेरिका और चीन की 38, और जापान की 48 साल।” उन्होंने प्रशिक्षुओं से निष्ठा और तकनीकी नवाचार के साथ काम करने का आग्रह किया।
संपत्ति प्रबंधन में पारदर्शिता की जरूरत
उपराष्ट्रपति ने रक्षा संपदा से जुड़े निर्णयों में पारदर्शिता बढ़ाने की अपील की। उन्होंने कहा कि इमारतों की ऊंचाई या अन्य नियमों की जानकारी सार्वजनिक प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध होनी चाहिए ताकि प्रक्रिया सरल और ईमानदार हो सके।
कोचिंग कल्चर पर कड़ा सवाल
कोचिंग संस्थानों के बाजारीकरण पर चिंता जताते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा, “क्या यही भारत है? बच्चों की तस्वीरें अखबारों में रैंक के साथ प्रकाशित होती हैं, यह सिर्फ व्यवसायीकरण है।” उन्होंने युवाओं को गुरुकुल परंपरा और आत्मनिर्भरता की ओर लौटने का आह्वान किया।
उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) देश को रटंत शिक्षा से निकालकर चिंतनशील, रचनात्मक और नवोन्मेषी सोच की ओर ले जाने का प्रयास है। कोचिंग शिक्षा का विकल्प नहीं हो सकती, यह सिर्फ कौशल सुधारने का माध्यम होनी चाहिए।
विकसित भारत: अब सपना नहीं, मंज़िल है
उपराष्ट्रपति ने ‘विकसित भारत’ की अवधारणा पर जोर देते हुए कहा, “अब यह सिर्फ सपना नहीं, हमारी मंज़िल बन चुका है। बीते दस वर्षों में देश ने अद्भुत विकास देखा है—शौचालय, गैस कनेक्शन, इंटरनेट, सड़कें, स्वास्थ्य सेवाएं, और उच्च गुणवत्ता की रेलगाड़ियां। अब लोग विकास का स्वाद पहचानने लगे हैं।”
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का संबोधन भारत की राजनीतिक स्वतंत्रता, नीति-निर्माण में संप्रभुता, और नवाचार से भरे भविष्य की स्पष्ट झलक देता है। उन्होंने न सिर्फ प्रशासनिक अधिकारियों को प्रेरित किया, बल्कि शिक्षा और विकास को लेकर देश की दिशा भी रेखांकित की। उनके विचार स्पष्ट संकेत देते हैं कि भारत अब दुनिया की शक्तियों से प्रभावित होने वाला नहीं, बल्कि विश्व मंच पर नेतृत्व करने को तैयार राष्ट्र बन चुका है।

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