
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने अपनी स्थापना के 100 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में मनाए गए वार्षिक विजयदशमी कार्यक्रम में अपनी दूसरी शताब्दी की यात्रा का शंखनाद किया। संघ प्रमुख मोहन भागवत ने इस अवसर पर सामाजिक एकता और स्वदेशी स्वावलंबन पर विशेष बल दिया, जो संघ के बढ़ते प्रभाव और उसकी सफलता के मूल सूत्र को रेखांकित करता है।
संघ प्रमुख का संदेश: स्वावलंबी बनें, सामाजिक एकता पर जोर
संघ प्रमुख मोहन भागवत ने अपने संबोधन में स्पष्ट किया कि कोई भी देश एकाकी प्रगति नहीं कर सकता, और उसकी निर्भरता दूसरों पर स्वाभाविक है, लेकिन यह निर्भरता कभी भी लाचारी में नहीं बदलनी चाहिए। उन्होंने स्वदेशी को अपनाने और स्वावलंबी बनने पर जोर दिया। भागवत ने इस दौरान बांग्लादेश और नेपाल की घटनाओं का भी उल्लेख किया, साथ ही टैरिफ के महत्व को भी समझाया, जो अप्रत्यक्ष रूप से देश की अर्थव्यवस्था और आत्मनिर्भरता की दिशा में संघ के विचारों को दर्शाता है।
विश्व के सबसे बड़े सामाजिक-सांस्कृतिक संगठन के रूप में संघ, भारत की प्रगति सुनिश्चित करने, भारतीय संस्कृति के निर्माण को बल देने और समाज में राष्ट्रीयता का बोध जगाने के लिए प्रतिबद्ध है। आज यदि भारत ने विश्व में अपनी पहचान बनाई है, तो इसमें स्वतंत्रता के बाद भारतीयों की भारतीयता के प्रति आस्था बनाए रखना एक बड़ा कारण है, जिसके लिए संघ का समर्पण साधुवाद योग्य है। संघ लगातार प्रयासरत है कि देश अपने सांस्कृतिक मूल्यों का ह्रास न होने दे।

संघ के प्रभाव का विशाल कैनवास
संघ की बात लाखों-करोड़ों लोगों तक पहुंचती है, और लोग उससे प्रभावित होते हैं। संघ का यह व्यापक प्रभाव उसके अनगिनत आनुषांगिक संगठनों के कारण है, जो विभिन्न क्षेत्रों में सक्रिय हैं। ये संगठन सामाजिक, सांस्कृतिक, शैक्षिक क्षेत्रों में न सिर्फ समाज सेवा कर रहे हैं, बल्कि देश की एकता और अखंडता के लिए भी समर्पित हैं।
राजनीतिक रूप से, संघ के एक संगठन के रूप में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का प्रभाव इसलिए अधिक है, क्योंकि वह पिछले 11 वर्षों से केंद्र की सत्ता में है और वह सामाजिक-सांस्कृतिक मामलों में संघ के विचारों को ही आगे बढ़ाती है। संतों, विचारकों, बुद्धिजीवियों समेत न जाने कितने लोगों के भारतीयता के प्रति समर्पण के पीछे एक अदृश्य शक्ति के रूप में संघ और उसके विभिन्न संगठनों का योगदान है। संघ ने यह भी स्पष्ट किया है कि वह उन सभी संगठनों के साथ है, जो भारत के सामाजिक विकास और राष्ट्रीय एकता के लिए प्रतिबद्ध हैं।
संघ की स्थापना की पृष्ठभूमि: विभाजन और सांस्कृतिक चिंता
जिस समय संघ की स्थापना हुई, भारतीय समाज विघटन से ग्रस्त था। अंग्रेजों द्वारा जानबूझकर बढ़ाई गई हिंदू-मुस्लिम खाई चौड़ी हो रही थी। उस दौर में कांग्रेस के अनेक नेताओं में भारतीयता को लेकर वह स्पष्टता नहीं थी, जिसकी आवश्यकता थी। मुस्लिम लीग की स्थापना हो चुकी थी, और वह कांग्रेस को मुसलमानों की चिंता न करने वाला संगठन बताकर दबाव बना रही थी।
अंग्रेजों के 200 वर्षों के शासनकाल और उससे पहले मुगलों के लंबे शासन के चलते भारतीय सभ्यता और संस्कृति चोटिल थी। कांग्रेस की राजनीति मुख्य रूप से आजादी पर केंद्रित थी, और उसके सामने भारतीय मूल्यों तथा संस्कारों को स्थापित करने का स्पष्ट लक्ष्य नहीं था। सांस्कृतिक, सामाजिक और धार्मिक क्षेत्र के अनेक विचारक चिंतित थे कि राजनीतिक ताकतें अंग्रेजों और मुस्लिम लीग के अनुचित तौर-तरीकों का प्रतिकार क्यों नहीं कर पा रही हैं। इसी पृष्ठभूमि में डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार द्वारा संघ की स्थापना हुई।
संघ-कांग्रेस मतभेद और निरंतर विरोध
कांग्रेस, जो एक राजनीतिक संगठन के रूप में भारतीयता के मूल्यों को अक्षुण्ण रखने पर अपेक्षित ध्यान नहीं दे पा रही थी, उसने संघ के विचारों को स्वीकार नहीं किया। यहीं से दोनों के बीच मतभेद उभरने शुरू हुए और वे बढ़ते ही गए। कांग्रेस ने संघ को सांप्रदायिक बताना शुरू कर दिया, जो आज तक जारी है।
आजादी के बाद, जब नाथूराम गोडसे ने महात्मा गांधी की हत्या की, तो कांग्रेस ने संघ पर हमला बोला और उसे हत्या के लिए दोषी ठहराया, जबकि गोडसे संघ की रीति-नीति से असहमत होकर उससे अलग हो चुका था और हिंदू महासभा में सक्रिय था। तभी से संघ को कठघरे में खड़ा करने का सिलसिला शुरू हुआ, जो आज भी कायम है। विपक्षी दलों में उसे सांप्रदायिक बताने की होड़ सी लगी रहती है, लेकिन इसके बावजूद संघ ने अपना प्रभाव लगातार बढ़ाया है और आज वह सबसे व्यापक प्रभाव वाला संगठन है। भाजपा की वैश्विक स्तर पर सबसे बड़े राजनीतिक संगठन बनने की सफलता के पीछे भी संघ का अतुलनीय योगदान है।

दूसरी शताब्दी का संकल्प: ‘पंच परिवर्तन’
भारतीय समाज के सामने वर्तमान चुनौतियों का सामना करने के लिए संघ ने पंच परिवर्तन का संकल्प लिया है, जिसके साथ वह अपनी दूसरी शताब्दी की यात्रा शुरू कर रहा है:
स्व-बोध: औपनिवेशिक मानसिकता त्यागकर स्वदेशी को अपनाना।
सामाजिक समरसता: वंचित वर्गों के लिए न्याय और समानता सुनिश्चित करना।
कुटुंब प्रबोधन: पारिवारिक मूल्यों को सशक्त करना।
नागरिक शिष्टाचार: नागरिक कर्तव्यों का पालन करना।
पर्यावरण संरक्षण: प्रकृति की रक्षा करना।
संघ का उद्देश्य भारतीय समाज का निर्माण करते हुए राष्ट्र निर्माण करना है। चूंकि समाज पर संघ के प्रभाव से भाजपा को राजनीतिक बल मिलता है, इसलिए विपक्षी दलों, विशेषकर कांग्रेस के लिए, संघ के विचारों का विरोध करना एक राजनीतिक मजबूरी बन गई है।
विरोधियों द्वारा लांछित किए जाने के बावजूद, संघ अपना काम करता रहता है, जिसका परिणाम है कि आज संघ का प्रभाव लगातार बढ़ रहा है, जबकि कांग्रेस का घट रहा है। इसका एक बड़ा कारण भारतीय समाज को समझने में कांग्रेस की नाकामी और उसकी तुष्टीकरण की नीति है। विरोधी दल संघ और भाजपा को आज भी पुराने चश्मे से देखने के आदी हैं, वे यह समझने को तैयार नहीं कि संघ के विचार वास्तव में भारतीय समाज के डीएनए का हिस्सा हैं, और यही उसके लगातार सफल होने का मूल कारण है। संघ की सफलता में ही भाजपा की सफलता भी निहित है।

नेता और नेतागिरि से जुड़ी खबरों को लिखने का एक दशक से अधिक का अनुभव है। गांव-गिरांव की छोटी से छोटी खबर के साथ-साथ देश की बड़ी राजनीतिक खबर पर पैनी नजर रखने का शौक है। अखबार के बाद डिडिटल मीडिया का अनुभव और अधिक रास आ रहा है। यहां लोगों के दर्द के साथ अपने दिल की बात लिखने में मजा आता है। आपके हर सुझाव का हमेशा आकांक्षी…



