
भारत की न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रक्रिया को लेकर एक बार फिर बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (SCBA) ने भारत के प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति भूषण रामकृष्ण गवई को एक कड़ा पत्र लिखकर न्यायिक नियुक्तियों में पारदर्शिता, योग्यता और जवाबदेही सुनिश्चित करने की मांग की है। SCBA ने इस पत्र के माध्यम से मौजूदा कॉलेजियम प्रणाली की खामियों को उजागर किया है और मेमोरेंडम ऑफ प्रोसीजर (MOP) को जल्द से जल्द अंतिम रूप देने पर जोर दिया है।
SCBA ने अपने पत्र में कहा है कि यदि न्यायपालिका को सही मायनों में स्वतंत्र और निष्पक्ष बनाना है, तो उसकी नियुक्ति प्रक्रिया को व्यवस्थित और निष्पक्ष बनाना सबसे पहला कदम होना चाहिए। संगठन का आरोप है कि कॉलेजियम प्रणाली, जिसे न्यायपालिका की स्वतंत्रता के लिए बनाया गया था, अब अपने ही बोझ तले दब गई है और कई कमियों के कारण योग्य उम्मीदवारों को दरकिनार कर रही है।
योग्यता की अनदेखी और प्रतिनिधित्व की कमी
SCBA ने पत्र में आरोप लगाया है कि सुप्रीम कोर्ट के कई प्रतिभाशाली वकीलों को जानबूझकर उनके गृह राज्य के हाईकोर्ट में न्यायाधीश बनने से वंचित किया जा रहा है, जबकि उनके पास राष्ट्रीय कानून और न्यायिक दृष्टिकोण का पर्याप्त अनुभव है। यह सीधे तौर पर योग्यता-आधारित चयन के सिद्धांत के खिलाफ है। संगठन का कहना है कि यह एक ऐसी प्रथा है जो न्यायपालिका में सर्वश्रेष्ठ प्रतिभाओं को आने से रोकती है।
इसके अलावा, SCBA ने न्यायपालिका में महिलाओं और विविध पृष्ठभूमि से आने वाले व्यक्तियों के बेहद कम प्रतिनिधित्व पर भी चिंता व्यक्त की है। पत्र में दिए गए आंकड़ों के अनुसार, फरवरी 2024 तक, हाईकोर्टों में केवल 9.5% और सुप्रीम कोर्ट में केवल 2.94% महिला न्यायाधीश हैं। इन आंकड़ों को पेश करते हुए, SCBA ने कहा कि यह न केवल असंतुलन दिखाता है, बल्कि यह भी सिद्ध करता है कि नियुक्तियाँ निष्पक्षता के बजाय अनौपचारिक नेटवर्क और सिफारिशों पर आधारित रही हैं।
पत्र में एक और महत्वपूर्ण मुद्दा उठाया गया है: कोर्ट की सफलता में अक्सर ब्रीफिंग वकीलों और जूनियर्स का बड़ा योगदान होता है, लेकिन न्यायिक पदों पर नियुक्ति में केवल बहस करने वाले वरिष्ठ वकीलों को ही प्राथमिकता दी जाती है। SCBA का तर्क है कि यह प्रक्रिया न्यायिक क्षमता के असली पैमाने को नकारती है।
MOP में सुधार के लिए SCBA के अहम सुझाव
SCBA ने MOP को अधिक प्रभावी और पारदर्शी बनाने के लिए कई अहम सुझाव भी दिए हैं। इन सुझावों में शामिल हैं:
स्थायी सचिवालय: प्रत्येक उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय में एक स्थायी सचिवालय स्थापित किया जाए, जो उम्मीदवारों और रिक्तियों से संबंधित आंकड़ों को संरक्षित करे और संस्थागत स्मृति को बनाए रखे।

आवेदन-आधारित प्रक्रिया: न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए एक पारदर्शी, आवेदन-आधारित प्रक्रिया लागू की जाए, ताकि सभी योग्य उम्मीदवारों को उचित अवसर मिले।
उद्देश्यपूर्ण मानदंड: उम्मीदवारों के मूल्यांकन के लिए आयु, कानूनी अनुभव, प्रकाशित निर्णय और निःशुल्क कार्य जैसे वस्तुनिष्ठ मानदंड प्रकाशित किए जाएँ।
SCBA ने ‘न्यायाधीशों की नियुक्ति सुविधा अधिनियम’ नामक एक प्रस्तावित कानून के मसौदे पर भी फिर से विचार करने का आग्रह किया है, जिसे कुछ समय पहले सरकार को सौंपा गया था।
“जनता का विश्वास लौटाना है तो पारदर्शिता ज़रूरी”
पत्र के अंत में, SCBA अध्यक्ष विकास सिंह ने लिखा, “न्यायिक नियुक्तियों में पारदर्शिता और योग्यता का पुनर्स्थापन ही जनता के विश्वास को लौटाने का एकमात्र रास्ता है।” उन्होंने सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम और सरकार से मिलकर MOP को अंतिम रूप देने का आग्रह किया और कहा कि अब इस प्रक्रिया को और टालने की कोई गुंजाइश नहीं है।
यह पत्र भारत की न्यायपालिका में चल रही आंतरिक बहस को सार्वजनिक मंच पर ले आया है। यह देखना बाकी है कि इस पत्र का क्या प्रभाव होता है और क्या सरकार और न्यायपालिका के बीच इस मुद्दे पर सहमति बन पाती है। SCBA के इस कदम से न्यायिक नियुक्तियों में सुधार की मांग को एक नई दिशा और गति मिलने की उम्मीद है।

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