
दिल्ली विश्वविद्यालय छात्रसंघ (डूसू) चुनाव 2025 के लिए गुरुवार को मतदान सफलतापूर्वक संपन्न हो गया। अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, सचिव और संयुक्त सचिव के चार केंद्रीय पदों के लिए हुए इस चुनाव में कुल 21 उम्मीदवार मैदान में थे, लेकिन मुख्य मुकाबला हमेशा की तरह अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) और कांग्रेस समर्थित नेशनल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ इंडिया (एनएसयूआई) के बीच ही माना जा रहा है। अब सबकी निगाहें शुक्रवार को होने वाली मतगणना पर टिकी हैं, जिसके बाद यह तय होगा कि डूसू की कमान किस छात्र संगठन के हाथ में जाएगी।
आरोपों-प्रत्यारोपों का दौर
मतदान के दौरान धांधली और अनियमितताओं के गंभीर आरोप भी सामने आए, जिससे चुनावी माहौल और गरमा गया। एनएसयूआई ने एबीवीपी पर कई तरह के आरोप लगाए। डूसू अध्यक्ष रौनक खत्री ने इस संबंध में सिविल लाइंस के पुलिस उपायुक्त (डीसीपी) को एक पत्र भी लिखा। पत्र में उन्होंने आरोप लगाया कि एबीवीपी कार्यकर्ता बूथ कैप्चरिंग, मतदाताओं के साथ छेड़छाड़ कर रहे हैं और परिसर में असामाजिक तत्वों को लेकर आए हैं।
खत्री ने दावा किया कि एबीवीपी कार्यकर्ता दिल्ली पुलिस के साथ मिलकर एनएसयूआई समर्थक मतदाताओं को धमका रहे हैं। उन्होंने एक घटना का जिक्र करते हुए कहा कि एक एबीवीपी महिला कार्यकर्ता ने उन्हें रोकने की कोशिश की, लेकिन वह डरने वालों में से नहीं हैं। इन आरोपों के साथ ही, खत्री ने चुनाव प्रक्रिया को तत्काल रोकने की मांग की।

एबीवीपी का पलटवार
एनएसयूआई के इन आरोपों के जवाब में, एबीवीपी ने तीखा पलटवार किया। एबीवीपी के राष्ट्रीय महामंत्री डॉ. वीरेंद्र सिंह सोलंकी ने एनएसयूआई के आरोपों को “हार की बौखलाहट” बताया। उन्होंने कहा कि दिल्ली विश्वविद्यालय में एबीवीपी की बढ़ती लोकप्रियता से एनएसयूआई घबराई हुई है और इसी वजह से वह बेबुनियाद आरोप लगा रही है।
सोलंकी ने दावा किया कि इस बार एनएसयूआई न केवल दूसरे, बल्कि तीसरे स्थान के लिए भी संघर्ष कर रही है, जो यह दर्शाता है कि उसका छात्र समुदाय के बीच समर्थन तेजी से घट रहा है। उनका यह बयान दोनों छात्र संगठनों के बीच की प्रतिद्वंद्विता को और अधिक तीखा बनाता है।
चुनावी नतीजों का महत्व
डूसू चुनाव के नतीजे न केवल छात्रों के बीच लोकप्रिय छात्र संगठन का फैसला करते हैं, बल्कि अक्सर राष्ट्रीय राजनीति की दिशा का भी संकेत देते हैं। डूसू में जीत या हार को अक्सर दिल्ली और देश भर में युवा मतदाताओं के बीच राजनीतिक दलों के समर्थन के बैरोमीटर के रूप में देखा जाता है। इस बार के चुनाव में, एबीवीपी अपनी जीत का दावा कर रही है, जबकि एनएसयूआई ने अपनी हार से पहले ही आरोपों का सहारा लिया है।

दोनों संगठनों ने अपने-अपने प्रचार में छात्रों के मुद्दों, जैसे कि शिक्षा, हॉस्टल की सुविधा, सुरक्षा और रोजगार के अवसरों को उठाया था। अब देखना यह होगा कि किस संगठन का संदेश छात्रों के बीच सबसे ज्यादा गूंजा।
शुक्रवार को तस्वीर होगी साफ़
तमाम आरोप-प्रत्यारोप के बीच अब सभी की निगाहें शुक्रवार के नतीजों पर टिकी हैं। मतगणना के बाद ही चुनावी नतीजों की अंतिम तस्वीर साफ होगी। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या एबीवीपी अपना वर्चस्व कायम रख पाती है या एनएसयूआई एक मजबूत वापसी करती है। इस चुनाव का परिणाम न केवल डूसू की कमान तय करेगा, बल्कि दिल्ली और राष्ट्रीय राजनीति में युवा शक्ति के रुझान को भी दर्शाएगा।

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