
भारतीय लोकतंत्र की नींव को मजबूत करने के लिए, भारत का चुनाव आयोग एक साहसिक और ऐतिहासिक कदम उठा रहा है – वह है, देशव्यापी विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) अभियान की शुरुआत। इस पहल का उद्देश्य, वर्षों से त्रुटिपूर्ण और विकृत हो चुकी मतदाता सूचियों को शुद्ध करना है। हालांकि, यह कदम एक राजनीतिक बवंडर भी पैदा कर रहा है। राजनीतिक गलियारों में इस पर आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है, कुछ इसे लोकतंत्र पर खतरा बता रहे हैं तो कुछ इसे एक आवश्यक संवैधानिक प्रक्रिया मान रहे हैं। लेकिन क्या यह सिर्फ एक राजनीतिक दाँव-पेंच है, या लोकतंत्र की स्वच्छता के लिए एक जरूरी कदम?
बिहार से उठा तूफान, देश तक पहुंचा
इस अभियान का पूर्वाभ्यास बिहार में हुआ, जहां मतदाता सूची के गहन पुनरीक्षण (SIR) ने चुनावी लोकतंत्र की खामियों को उजागर कर दिया। शुरुआत में इस प्रक्रिया को लेकर विपक्ष ने जमकर हंगामा किया और आरोप लगाया कि इसके जरिए जानबूझकर गरीबों और खास समुदाय के लोगों के नाम सूची से हटाए जा रहे हैं। मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा, जहां अदालत ने राजनीतिक दलों से उन लोगों के नाम जोड़ने को कहा, जिनके नाम गलत तरीके से हटाए गए थे। लेकिन हैरानी की बात यह है कि अदालत में पेश किए गए अधिकतर प्रतिवेदन, नाम जुड़वाने के बजाय नाम कटवाने के थे। इससे यह साफ हो गया कि यह सिर्फ एक राजनीतिक खेल था।
यह बात कांग्रेस के उदाहरण से और भी स्पष्ट हो जाती है। पार्टी ने 89 लाख प्रतिवेदन प्रस्तुत करने का दावा किया, लेकिन ये सभी नाम कटवाने के लिए थे। ऐसे में अगर चुनाव आयोग ने 65 लाख मृत, स्थानांतरित या अनुत्तरित नामों को सूची से हटा दिया, तो क्या यह लोकतंत्र के लिए खतरा था? या फिर यह एक जरूरी कदम था, ताकि फर्जी मतदान और चुनावी धांधली पर रोक लग सके? यह सवाल आज भी प्रासंगिक है, और इस मुद्दे पर राजनीतिक दलों का रवैया अभी भी नहीं बदला है।]

बंगाल में होगी असली परीक्षा
अब इस देशव्यापी SIR अभियान की असली परीक्षा पश्चिम बंगाल में होगी। यह राज्य अपनी चुनावी हिंसा और राजनीतिक ध्रुवीकरण के लिए जाना जाता है। पिछले कुछ दशकों में यहां घुसपैठियों ने कई जिलों की जनसांख्यिकी को बदल दिया है। चुनावी प्रक्रिया भारतीय मतदाताओं के हाथों से निकलकर घुसपैठियों के हाथों में नियंत्रित होने लगी है। ऐसे में, बंगाल में इस अभियान को लागू करना एक बड़ी चुनौती साबित होगा। राज्य में पुलिस और अन्य अधिकारियों का भी राजनीतिकरण हुआ है, जिससे यह कार्य और भी कठिन हो जाता है।
संभव है कि इस प्रक्रिया को सुचारु रूप से चलाने के लिए गृह मंत्रालय को भी हस्तक्षेप करना पड़े, और सुप्रीम कोर्ट की भूमिका भी महत्वपूर्ण हो सकती है। अगर बंगाल में यह अभियान सफल हो जाता है, तो देश के बाकी हिस्सों में इसकी राह आसान हो जाएगी और उन संकीर्ण राजनीतिक बहसों पर भी लगाम लगेगी जो बेवजह चलाई जा रही हैं।
एक साथ, एक ही समय पर: क्यों है यह जरूरी
आज देश में अलग-अलग राज्यों में हर साल चुनाव होते हैं, और हर बार मतदाता सूचियों को लेकर विवाद होता है। इस विवाद को खत्म करने के लिए, देशव्यापी SIR अभियान एक साथ, एक ही समय पर चलाना जरूरी है। इससे यह सुनिश्चित होगा कि मतदाता सूची का शुद्धीकरण एक स्थायी प्रक्रिया बन जाए।
लेकिन यह सिर्फ घर-घर जाकर सर्वेक्षण करने से संभव नहीं होगा। चुनाव आयोग को मतदाता सूची के शुद्धिकरण के लिए ऑटोमेशन को भी अपनाना होगा। आज जब हर व्यक्ति अपने आधार को अपडेट करता है, तो उसे मतदाता सूची से भी जोड़ा जा सकता है। इससे एक ही व्यक्ति का नाम कई स्थानों पर पंजीकृत नहीं होगा। आधार को वोटर कार्ड से जोड़ने से एक और फायदा होगा – नागरिकता की पुष्टि। यह गृह मंत्रालय का अधिकार क्षेत्र है, लेकिन चुनाव आयोग को भी मतदाता सूची में नाम शामिल करने से पहले नागरिकता की पुष्टि करने का अधिकार मिलना चाहिए।

जब तक देश में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) नहीं बनता और नागरिकों का रजिस्टर तैयार नहीं होता, तब तक यह प्रक्रिया और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। क्योंकि एक राष्ट्र को अपने नागरिकों और अवैध प्रवासियों के बारे में जानकारी होनी ही चाहिए। इस बात पर विपक्ष भले ही अड़ंगा लगाए, लेकिन यह देश की सुरक्षा और अखंडता के लिए एक जरूरी कदम है।
क्या हो सकता है भविष्य में- सहयोग या टकराव
आज भारत में लगभग 98 करोड़ मतदाता हैं, और वर्षों से मतदाता सूची में त्रुटियां मौजूद हैं। इसके लिए चुनाव आयोग, राजनीतिक दल और मतदाता खुद भी जिम्मेदार हैं। इस मुद्दे पर सत्ता पक्ष और विपक्ष को एक साथ आना चाहिए और एक व्यापक बहस करनी चाहिए। यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि मतदाता सूची में केवल भारतीय नागरिकों के नाम हों, और इसके अपडेट के लिए एक ऑटोमेटिक और पारदर्शी प्रक्रिया हो।
यह सच है कि बड़े बदलावों के साथ विरोध और विवाद होते हैं, लेकिन जब धूल बैठ जाती है, तो तस्वीर साफ हो जाती है। चुनावी लोकतंत्र की स्वच्छता के लिए, यह जरूरी है कि हर मतदाता का सत्यापन हो। क्या राजनीतिक दल इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर देश के साथ खड़े होंगे, या वे अपनी संकीर्ण राजनीति को जारी रखेंगे? यह सवाल ही आज के राजनीतिक परिदृश्य का सबसे बड़ा सवाल है।

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