
तमिलनाडु विधानसभा चुनाव में अब सिर्फ सात महीने बचे हैं और राज्य की राजनीति में एक नया समीकरण बनता दिख रहा है। सत्ताधारी डीएमके के नेतृत्व वाला गठबंधन मजबूत स्थिति में है, जबकि विपक्षी खेमे में अन्नाद्रमुक और भाजपा का गठबंधन है। लेकिन इन दोनों के बीच अभिनेता विजय का प्रवेश चुनावी मुकाबले को त्रिकोणीय बना रहा है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस चुनाव में विजय ‘एक्स फैक्टर’ साबित हो सकते हैं।
बीते शनिवार को चेन्नई से 332 किलोमीटर दूर तिरुच्चिरापल्ली (त्रिची) में विजय ने अपने राजनीतिक दल ‘तमिलगा वेत्री कड़गम’ (टीवीके) का चुनावी अभियान शुरू किया। त्रिची हवाई अड्डे से सभास्थल तक उनकी एक झलक पाने के लिए उमड़ा जनसैलाब चौंकाने वाला था। 20 मिनट की दूरी तय करने में उन्हें पांच घंटे लग गए। लोगों की भारी भीड़ ने त्रिची की सड़कों को पूरी तरह से जाम कर दिया था। लोग पेड़ों और बिजली के खंभों पर चढ़ गए थे, जिससे सुरक्षा एजेंसियों को भीड़ को नियंत्रित करने में कड़ी मशक्कत करनी पड़ी। पूरा शहर थम सा गया था।
सभा में बाधा और राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप
विजय जब सभास्थल पर पहुंचे, तो उन्हें संबोधित करने का मौका नहीं मिला। बिजली विभाग ने दलील दी कि उनके प्रशंसक बिजली के खंभों पर चढ़ रहे थे, जिससे उन्हें करंट लगने का खतरा था। इसी वजह से बिजली काट दी गई थी, जिससे लाउडस्पीकर और अन्य उपकरण बंद हो गए। हालांकि, विजय के समर्थकों ने इसे सत्ताधारी पार्टी की जानबूझकर की गई कार्रवाई बताया। बिना किसी संगठित प्रयास के जुटी इस विशाल भीड़ ने सत्ताधारी और विपक्षी, दोनों खेमों के स्थापित नेताओं की नींद उड़ा दी है। अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या विजय इस भीड़ को वोट में बदल पाएंगे?

डीएमके और भाजपा-अन्नाद्रमुक गठबंधन की चुनौतियाँ
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि त्रिची में जुटी भीड़ का एक बड़ा हिस्सा गैर-राजनीतिक था। विजय ने अपने अभियान में डीएमके पर चुनावी वादों को पूरा न करने का आरोप लगाया और भाजपा को ‘तमिल विरोधी’ करार दिया। डीएमके की सबसे बड़ी ताकत उसके एकजुट सहयोगी दल हैं, जबकि भाजपा-अन्नाद्रमुक गठबंधन में आंतरिक कलह साफ दिख रही है।
अन्नाद्रमुक सुप्रीमो ए पलानीसामी (ईपीएस) ने भाजपा के इस सुझाव को ठुकरा दिया है कि उन्हें अपनी पार्टी के सभी गुटों को एकजुट करना चाहिए, जिससे भाजपा की चिंताएं बढ़ गई हैं। भाजपा नेतृत्व फिलहाल अन्नाद्रमुक के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप से बच रहा है और सार्वजनिक रूप से कोई बयान देने से कतरा रहा है।
इस बीच, पूर्व मुख्यमंत्री ओ पन्नीरसेल्वम (ओपीएस), जिन्हें ईपीएस ने अन्नाद्रमुक से बाहर कर दिया था, निराश होकर एनडीए से अलग हो गए हैं। इसी तरह, दिवंगत जे जयललिता की सहेली शशिकला के भतीजे टीटीवी दिनाकरन द्वारा स्थापित पार्टी एएमएमके ने भी एनडीए छोड़कर विजय की पार्टी टीवीके के साथ गठबंधन की इच्छा जताई है। दिवंगत फिल्म स्टार विजयकांत की पार्टी डीएमडीके के एक अन्य सहयोगी पुथिया थमिलगाम ने भी एनडीए छोड़ दिया है और टीवीके की प्रशंसा शुरू कर दी है। एक और प्रमुख सहयोगी अंबुमणि रामदास की पीएमके भी भाजपा को समर्थन देने के मुद्दे पर विभाजित है।
हाल ही में, प्रदेश के पूर्व भाजपा प्रमुख के अन्नामलाई ने सार्वजनिक बयान जारी कर ईपीएस को अन्नाद्रमुक-भाजपा गठबंधन की ओर से मुख्यमंत्री उम्मीदवार के रूप में स्वीकार किया है, जो गठबंधन में चल रही खींचतान को दिखाता है।

क्या विजय वोट में बदल पाएंगे अपनी लोकप्रियता?
निस्संदेह, चुनावी मैदान में कूदकर विजय चर्चा का विषय बन गए हैं, लेकिन क्या वह सत्ता तक पहुंचने के लिए जरूरी वोट हासिल कर पाएंगे? यह एक बड़ा सवाल है, क्योंकि उनके प्रतिद्वंद्वियों, डीएमके और अन्नाद्रमुक, के पास कार्यकर्ताओं की एक बड़ी फौज है, जबकि विजय के पास प्रशंसकों की बेकाबू भीड़ है। यह देखने वाली बात होगी कि क्या वह अपने प्रशंसकों को सक्रिय मतदाताओं में बदल पाते हैं। एक बात तो तय है कि विजय का प्रवेश 2026 के तमिलनाडु विधानसभा चुनाव को बेहद दिलचस्प बना सकता है।

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