
आज का विश्व अशांति, दुख और संघर्ष की गहरी खाई में फंसा हुआ है। हम अपने जीवन में जो कुछ भी करते हैं, चाहे वह राजनीतिक हो, सामाजिक हो या आर्थिक, वह हमें शांति की ओर ले जाने के बजाय, अक्सर और अधिक अशांति पैदा करता है। यह एक कड़वा सच है कि जीवन के साथ-साथ विनाश का साया भी चल रहा है। युद्ध रोकने के हमारे सभी प्रयास, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन, मूल रूप से संघर्ष की ही एक नई कहानी लिखते हैं।
यह स्थिति हमें सोचने पर मजबूर करती है कि क्या हम इस दुख और उलझन की जकड़न से तुरंत मुक्त हो सकते हैं? क्या हम इस क्लेश को इसी क्षण समाप्त कर सकते हैं? इतिहास में बुद्ध और ईसा जैसे महान व्यक्तित्व आए, जिन्होंने आस्था के मार्ग से मुक्ति पाने का रास्ता दिखाया, लेकिन वे भी पूरी दुनिया से दुख और भ्रांति को खत्म नहीं कर सके। इसलिए, हमारी सबसे बड़ी चुनौती यह है कि हम इस क्लेश से कैसे तुरंत बाहर निकलें, न कि कल या आने वाले भविष्य में।
वर्तमान में ही समाधान
लेखक का मानना है कि इस क्लेश से बाहर निकलने का एकमात्र तरीका यह है कि हम इस दुनिया में रहकर भी उसका हिस्सा बनना अस्वीकार कर दें। इसका मतलब यह नहीं है कि हम समाज से दूर भाग जाएं, बल्कि इसका अर्थ यह है कि हम समाज में व्याप्त अशांति और संघर्ष का हिस्सा न बनें। यह कोई भविष्य का काम नहीं है, बल्कि यह इसी क्षण किया जाना चाहिए। आज जब हम एक ऐसे विनाशकारी और भयावह युद्ध की ओर बढ़ते हुए दिख रहे हैं, जिसे हम रोक नहीं पा रहे हैं, तब हमें तुरंत उस भ्रांति और क्लेश को समझने और महसूस करने की आवश्यकता है। जब हम स्वयं इसका बोध कर लेंगे, तभी हम दूसरों में भी सत्य का बोध जगा पाएंगे।
यदि हम यह सोचें कि हम यह काम कल करेंगे, तो भ्रांति की लहरें हम पर हमेशा के लिए हावी हो जाएंगी। इसलिए, प्रत्यक्ष बोध केवल वर्तमान में ही संभव है। यह एक ऐसी क्रांति है, जो किसी विश्वास या मान्यता पर आधारित नहीं है, बल्कि यह एक व्यक्तिगत और आंतरिक क्रांति है।

सतही क्रांति बनाम सच्ची क्रांति
लेखक का यह भी कहना है कि सच्ची क्रांति का मतलब पूंजीपतियों को हटाकर किसी दूसरे वर्ग को स्थापित करना नहीं है, क्योंकि जिसे हम अक्सर क्रांति कहते हैं, वह केवल दक्षिणपंथी विचारों का वामपंथी विचारों के अनुसार संशोधन या सातत्य है। दूसरे शब्दों में, वामपंथी विचार दक्षिणपंथी विचारों को ही एक संशोधित रूप में बनाए रखता है। यदि दक्षिणपंथी विचार भौतिक मूल्यों पर आधारित है, तो वामपंथी विचार भी मूल रूप से भौतिक मूल्यों पर ही आधारित है। अंतर केवल मात्रा या अभिव्यक्ति का होता है।
एक सच्ची क्रांति तभी संभव है, जब आप दूसरों के साथ अपने संबंधों के प्रति सचेत हों। जब आप अपने भीतर की भ्रांति, दुख और संघर्ष को समझेंगे, तभी आप समाज में एक सार्थक बदलाव ला सकते हैं। सच्ची क्रांति बाहर से नहीं आती, बल्कि वह भीतर से शुरू होती है। यह एक ऐसा आमूल परिवर्तन है, जो व्यक्ति के भीतर होता है। यह एक ऐसी चुनौती है, जिसे हमें स्वीकार करना होगा। यह चुनौती हमें एक ऐसी अवस्था में ले जा सकती है, जहाँ हम सत्य का स्वयं, प्रत्यक्ष बोध कर लें और भ्रांति का पूरी तरह से अंत कर दें।
यह एक ऐसा परिवर्तन है, जो न केवल हमारे व्यक्तिगत जीवन को शांत और सुखी बनाएगा, बल्कि समाज में भी एक सकारात्मक बदलाव लाएगा। जब हर व्यक्ति इस आंतरिक क्रांति को महसूस करेगा, तभी एक सच्चा और स्थायी सामाजिक परिवर्तन आएगा।

राजनीति में विरोधी खेमे को खोदने और चिढ़ाने वाली खबरों को अलग महत्व होता है। इसके लिए नारद बाबा अपना कालम लिखेंगे, जिसमें दी जाने वाली जानकारी आपको हंसने हंसाने के साथ साथ थोड़ा सा अलग तरह से सोचने के लिए मजबूर करेगी। 2 दशक से पत्रकारिता में हाथ आजमाने के बाद अब नए तेवर और कलेवर में आ रहे हैं हम भी…..



